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मध्यपाषाण और नवपाषाण काल Mesolithic and Neolithic Age

मध्यपाषाण काल और नवपाषाण काल UPSC, Bank exam, राज्य लोक सेवा आयोग की प्रीलिम्स परीक्षाओं और SSC और अन्य सभी परीक्षाओं के लिए अत्यंत जरूरी है। इस पोस्ट में हम Mesolithic age and Neolithic Age के बारे में बात करेंगे। यह पोस्ट UPSC notes in hindi की करुरत को ध्यान में रखकर बनायीं गयी है। आशा है इस से तैयारी अक्रें वाले छात्रों को मदद मिलेगी।

मध्यपाषाण और नवपाषाण काल में आधुनिक मानव के जीवन की प्रतिच्छाया दिखनी शुरू हो गयी थी।
पुरापाषाण काल में मानव खाद्य संग्राहक, आखेटक और गुफाओं में रहता था।

धीरे – धीरे इनके जीवन में सुधार हुआ। आग की खोज हुई तो लोगों को अपने जीवन यापन में आसानी हुई। मानव अब आग का उपयोग जानवरों को अपने से दूर भगाने में, कच्चा मांस पकाने में और शिकार करने में करने लगा।

धीरे – धीरे मानव पत्थर के उपयोग से विभिन्न प्रकार के औजारों का निर्माण करने लगा। औजारों के निर्माण से शिकार करने में आसानी होने लगी। पुरापाषाण काल में मानव नदियों के किनारे रहता था और मछलियों का शिकार करता था।

FACT:- भारत में वर्ष 1863 ई. में सर्वप्रथम राबर्ट ब्रूस फुट (भू-वैज्ञानिक) द्वारा में पाषाण कालीन सभ्यता की खोज की गई।

FACT:- पहला पुरा पाषाण कालीन उपकरण मद्रास के पास पल्लवरम् नामक स्थान से प्राप्त किया था।

मानव जीवन की प्रगति मध्यपाषाण काल से शुरू हुई। इस आर्टिकल में हम मध्यपाषाण और नव पाषाण काल के बारे में विस्तार से जानेंगे।

मध्यपाषाण काल Mesolithic Age

ई.पू. 10000 के आस पास हिमयुग की समाप्ति के बाद जलवायु गरम और बरसाती हो गई। इस परिवर्तन ने जीव और वनस्पति में परिवर्तन लाए। मनुष्य के जीवन में ये परिवर्तन क्रांति लेकर आया। बरसात ने जमीन को उपजाऊ बनाने में अहम योगदान दिया। उपजाऊ जमीन ने कृषि का मार्ग प्रशस्त किया और कृषि ने पशुपालन का मार्ग प्रशस्त किया।
इंसान पशुपालन करना सीख गया और पशु का शिकार के अलावा और उपयोग करना सीख गया।

समयसीमा:- ई. पू. 9000

यह पुरापाषाण युग और नवपाषाण युग के बीच एक संक्रमण का कल है।

मध्यपाषाण काल में रहन सहन

इस काल में जलवायु परिवर्तन से इंसान के जीवन में भी परिवर्तन हुए। हरी घास की उत्पत्ति से शाकाहारी जानवरों की उत्पत्ति हुई जिसके फलस्वरूप मानवों में पशुपालन की प्रवत्ति जागृत हुई। मानव अब शिकार की बजाय पशुओं को पालने योग्य समझने लगा। हालांकि भोजन का संग्रहण पहले के ही तरह रहा।

प्रमुख औजार:- तीर कमान

इस काल में मानव विशेष प्रकार के औजार माइक्रोलिथ का प्रयोग करने लगा।

मध्यपाषाण काल के प्रमुख स्थल

महत्वपूर्ण स्थल:- राजस्थान, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मध्य और पूर्वी भारत और कृष्णा नदी के दक्षिण में मध्य पुरापाषाण कालीन साक्ष्य मिले हैं।

NOTE:- आदमगढ़ (मध्य प्रदेश) और बागौर (राजस्थान) से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए है, जो लगभग 5000 ई.पू. के है तथा सर्वप्रथम इसी काल के मानव कंकाल प्राप्त हुए हैं।

मध्यपाषाण संस्कृति ने ही नवपाषाण संस्कृति के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

नवपाषाण काल Neolithic Age

विश्व में नवपाषाण काल की शुरुआत लगभग ई. पू. 9000 में मानी जाती है, परंतु भारतीय उपमहाद्वीप में ये ई. पू. 7000 में शुरू हुआ।

भारतीय उपमहाद्वीप में मेहरगढ़ एकमात्र नवपाषाण कालीन साक्ष्य प्रस्तुत करता है। जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है।

FACT:- भारत में नवपाषाण काल से संबंधित पुरातात्विक खोज प्रारम्भ करने का श्रेय डॉ प्राइमरोज को जाता है , जिन्होंने 1842 ई में कर्नाकट के लिंगसुगुर नामक स्थल से उपकरण खोजे थे ।

1860 ई० में लॉ मासुरिये ने इस काल के प्रथम प्रस्तर उपकरण के साक्ष्य को उत्तर प्रदेश की टोंस नदी घाटी से प्राप्त किया था ।

नवपाषाण काल में रहन सहन

नवपाषाण युग के लोगों ने शुरू से ही गेंहू और जौ का उत्पादन किया। इस काल के निवासी सबसे पुराने कृषक समुदाय थे। इस युग में सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इस काल के लोग स्थाई घर बनाकर रहते थे। नवपाषाण काल में मानव गेहूँ, चावल, जौ, मूंग, मसूर आदि फसलों की खेती करने लगा था। नवपाषाण कालीन लोग मिट्टी और सरकंडे की लकड़ी से बने वृत्ताकार और आयताकार घरों में रहते थे।

शुरू में बकरी पालन की प्रधानता थी किंतु बाद मे ढोर – डंगर का पालन होने लगा। पशुपालन से कृषि में भी मदद मिली।
इस युग में पहिए का आविष्कार हुआ जिसने मानव जीवन में क्रांति ले आई।

अनाज के उत्पादन के फलस्वरूप अनाज का भंडारण भी शुरू हुआ। भंडार गृह का निर्माण होने लगा। प्रायः भंडार गृह मिट्टी की ईटों के बने होते थे।

ई. पू. 5000 तक लोग बर्तन बनाने की कला से अनभिज्ञ थे। 4500 में चाक का आविष्कार हुआ जिससे बर्तन बनाने का कार्य भी शुरू हुआ। नवपाषाण काल में ही ताम्बे का सर्वप्रथम प्रयोग लगभग 5000 ईसा पूर्व में किया गया ।

नवपाषाण काल Neolithic Age के औजार

इस काल में लोग पत्थर के पालिशदार औजारों, पत्थर के चिकनाए हुए औजारों और हथियारों का प्रयोग करते थे। इनमे कुल्हाड़ी प्रमुख थी।

भारत की पहाड़ी इलाकों में बड़ी संख्या में कुल्हाड़ी पाई गई है।

बुर्जहोम
श्रीनगर से 16 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम में बुर्जहोम नवपाषाण युग का एक महत्वपूर्ण स्थल है। बुर्जहोम का अर्थ “भोजपत्र की जगह” है।

समयसीमा:- 2700 ई. पू.

  • बुर्जहोम में लोग झील के किनारे रहते थे, उनके पास स्थाई निवास नही थे। बुर्जहोम (कश्मीर) संस्कृति में मानव जमीन के अंदर गड्ढे बनाकर (गर्तघर) निवास करते थे।
  • उनकी आजीविका शिकार और मछली पकड़ने पर आधारित थी।
  • वे कृषि से परिचित थे लेकिन कृषि नही करते थे।
  • गुफ्कल के लोग, कृषि और पशुपालन दोनो करते थे। गुफ्कल श्रीनगर से 41 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में एक नवपाषाण कालीन स्थल है।
  • कश्मीर में नवपाषाण लोग पत्थर के उपकरणों का प्रयोग करते थे।
  • बुर्जहोम में लोग भूरे मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करते थे
  • बुर्जहोम में अपने पालक के साथ उसके पालतू कुत्ते को भी दफनाया जाता था। ऐसा कही और नही देखा गया।
  • चिरांद
    भारत में नवपाषाण कालीन स्थल में हड्डियों के उपकरण केवल चिरांद में मिलते हैं। जो पटना से 40 किलोमीटर पश्चिम में है।
  • ये औजार मुख्य रूप से हिरण के सींगो से बने थे जो 100 सेंटीमीटर बारिश वाले क्षेत्र में पाए गए।
  • गंगा, सोन, गंडक और घाघरा के संधि स्थल की खुली जमीन में बस्तियों की स्थापना हुई लेकिन यह पत्थर के औजारों की कमी पाई गई है।
  • समयसीमा:- 2000 ई.पू.

नवपाषाण काल के प्रमुख स्थल

प्रमुख स्थल:-


उत्तर पश्चिम भारत के गारो पहाड़ियों में नवपाषाण कालीन स्थल पाए गए हैं।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और इलाहाबाद में नवपाषाण कालीन बस्तियां मिली है। 5000 ई.पू. में इलाहाबाद जिले में कोल्डीह्वा और महाग्र में धान की खेती के साक्ष्य मिले हैं। पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य आदमगढ़ एवं बागौर से प्राप्त होता है। नर्मदा घाटी (मध्य प्रदेश) में स्थित हथनौरा से मानव खोपड़ी का जीवाश्म प्राप्त हुआ है। जो भारत में सबसे प्राचीन है। उड़ीसा और छोटा नागपुर के पहाड़ी इलाकों में नव पाषाण कालीन छेनी और कुल्हाड़ी पाए गए हैं।

दक्षिण भारत में नवपाषाण बस्तियां

दक्षिण भारत में आम तौर पर नवपाषाण बस्तियां 2500 ई.पू. की हैं। नवपाषाण कालीन लोगो का एक महत्वपूर्ण समूह दक्षिण भारत में बसा। ये समूह गोदावरी नदी के दक्षिण में अपना निवास स्थान बनाया।

समयसीमा:- ई. पू.2400-1000

  • ये लोग पत्थर की कुल्हाड़ी और पत्तियों का प्रयोग किया।
  • ये लोग बड़ी संख्या में मवेशी पाले।
  • ये लोग मकई पीसने वाली चक्की का प्रयोग किया।
  • दक्षिण भारत में पत्थर की उपलब्धता के कारण आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में 850 से अधिक नवपाषाण बस्तियां मिली है।
  • पिकलिहल में राख के ढेर और शिविर स्थल पाए गए हैं।
  • पिकलिहल के लोग चरवाहे थे। ये लोग भेड़, बकरियां और मवेशी पालते थे।

मध्यपाषाण और नवपाषाण काल प्रमुख कालक्रम

  • 9000-4000 ई.पू. – भारत में मध्य पाषाण युग
  • 7000 ई.पू. – भारतीय उपमहाद्वीप में नव पाषाण युग
  • 4500 ई.पू. – कुम्हार का चाक
  • 2500 ई.पू. – कश्मीर में नव पाषाण कालीन बस्तियां
  • 2500 ई.पू. – दक्षिण भारत ने नव पाषाण कालीन बस्तियां
  • 2000 ई.पू. – चिरांद में नव पाषाण कालीन साक्ष्य
  • 1000 ई.पू. – दक्षिण और पूर्वी भारत में नव पाषाण कालीन बस्तियां।
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