बौद्ध धर्म Ancient Indian History का ही एक अंश है और यह भाग UPSC, SSC, Bank exam, व कई अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की द्रष्टि से बहोत अधिक महत्यपूर्ण है। इस पोस्ट में बौद्ध धर्म के बारे में विस्तार में वर्णन किया गया है। यह पोस्ट Ancient Indian History notes in Hindi व UPSC notes in Hindi को ध्यान में रखकर बनायीं गयी है। इस से पहले हम पुरापाषाण काल और अन्य प्राचीन भारत इतिहास के भागों पर कई पोस्ट कर चुके है जिसे आप हमारी वेबसाइट igmcshimla.org पर जाकर देख सकते है। आप किस अन्य टॉपिक पर पोस्ट चाहते है उस बारे में हमे कमेंट कर सकते है।
बौद्ध धर्म भी भक्ति आंदोलन की ही देन थी। घोर ब्राह्मणवाद और कर्मकांडो से लिप्त समाज में जैन धर्म एक आशा की किरण लेकर आया, लेकिन जैन धर्म अपना प्रभाव कुछ निश्चित क्षेत्रों में ही छोड़ पाया।
धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों को जैन धर्म कुछ हद तक ही कम कर पाया। तभी भारत में एक नए धर्म का उदय हुआ जिसको बौद्ध धर्म कहते हैं।
बौद्ध धर्म ने देश में नहीं अपितु विदेशों में भी अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा और भारतीय समाज और धर्म का पुनरोद्धार किया।
इस लेख में हम बौद्ध धर्म के उदय के कारण, बौद्ध धर्म का इतिहास, बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांत और शिक्षाएं, बौद्ध धर्म के प्रमुख प्रचारक, महात्मा बुद्ध के जीवनकाल, महात्मा बुद्ध के प्रमुख शिष्य और गुरु, दुनिया में बौद्ध धर्म की उपस्थिति, प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थल, बुद्ध धर्म की जातियां, भारतीय समाज और संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान और बौद्ध धर्म का पतन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मणवाद पर्याप्त मात्रा में व्याप्त था। अन्य वर्ण ब्राह्मणों से वैमनस्य रखते थे और वे इस ब्राह्मणवाद को जल्द से जल्द जड़ से उखाड़ फेंकना चाहते थे।
जैन धर्म के असफल होने का प्रमुख कारण यही ब्राह्मणवाद ही था क्योंकि जैन धर्म ब्राह्मण धर्म से मिलता जुलता था और इसमें स्त्रियों का आना मना था, इससे अन्य वर्ण के लोगों और विशेषकर स्त्रियों को जैन धर्म खास प्रभावित नहीं कर पाया।
बौद्ध धर्म भारतीय समाज की अभिव्यक्ति है। यह कर्मकांडो और ब्राह्मणवाद के खिलाफ एक नई विचारधारा थी जिसको लोगों ने सहर्ष स्वीकार किया। बौद्ध धर्म एक तर्क आधारित धर्म है।
बौद्ध धर्म का प्रवर्तन महात्मा बुद्ध ने किया था। आज बौद्ध धर्म ईसाई और इस्लाम के बाद सबसे ज्यादा प्रसारित धर्म है। भारत में सर्वप्रथम धार्मिक जुलूस बौद्ध धर्म ने ही निकाला था।
आज दुनिया में करीब 2 अरब लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं जो कुल विश्व का लगभग 29% है।
दुनिया के 200 से अधिक देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायी रहते हैं। चीन, जापान, थाईलैंड, म्यांमार, भूटान, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, उत्तरी कोरिया और सिंगापुर आदि प्रमुख देशों में बौद्ध धर्म एक प्रमुख धर्म है।
बौद्ध धर्म के इतिहास के अनुसार बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध हैं। जो महावीर स्वामी के ही समकालीन थे और क्षत्रिय वंश के थे।
गौतम बुद्ध के पिता कपिलवस्तु के चुने हुए शासक थे। वे शाक्य गणतांत्रिक कबीले के प्रमुख थे।
महात्मा बुद्ध को एशिया का प्रकाश कहते हैं।
महात्मा बुद्ध का जन्म ई.पू. 563 के लगभग कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक जगह में हुआ था। यह जगह नेपाल के तराई के करीब है।
गौतम बुद्ध की मां कोशल राजवंश की राजकुमारी थी। गौतम बुद्ध के जन्म के साक्ष्य सम्राट अशोक के रुम्मिनदेई स्तम्भ लेख से मिलते हैं।
महात्मा बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम मायादेवी था। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
इनके जन्म के एक सप्ताह बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया था।अतः उनका पालन पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था। उनका विवाह शीघ्र ही कर दिया गया।
बुद्धचरित के अनुसार उनकी पत्नी का नाम यशोधरा था, हालांकि उनको वैवाहिक जीवन में कोई दिलचस्पी नहीं थी। 28 वर्ष की आयु में उनको पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम राहुल रखा गया।
उन्होंने महावीर स्वामी की तरह 29 वर्ष की आयु में अर्धरात्रि में ही घर छोड़ दिया। इस घटना को बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।
उनके गृह त्याग के राजनीतिक कारण भी थे। इतिहास के अनुसार, शाक्य और कोलिय राजाओं में रोहणी नदी के विषय में अक्सर लड़ाई हुआ करती थी। कोलियों के दमन की जिम्मेदारी सिद्धार्थ के हाथों में थी और वह हिंसा के पक्षधर नहीं थे।
6 वर्ष तक भटकने के बाद अंततः 35 साल की आयु में बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त किया। ज्ञान प्राप्ति के कारण उनको बुद्ध अर्थात् आत्मज्ञानी कहा गया।
गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश बनारस के सारनाथ में दिया था। यह उपदेश धर्मचक्रप्रवर्तन के नाम से प्रसिद्ध है।
उनकी उपदेश की भाषा पालि थी। ऐसा कहा जाता है कि वे केवल वर्षा ऋतु में आराम करते थे।
महात्मा बुद्ध कभी किसी भी वर्ण विशेष और स्त्रियों को बौद्ध धर्म की शरण में आने से रोक नही लगाई। गौतम बुद्ध ने अपने सबसे ज्यादा उपदेश श्रावस्ती में दिए।
गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश कुशीनगर में सुभद्र नामक व्यक्ति को दिया।
इतिहास के अनुसार, कुशीनगर में उपदेश देने के बाद वे अपने एक शिष्य चुन्द लौहर से मिलने गए वही पर इनको धोखे से सुअर का मांस खाने के कारण अतिसार रोग होने के कारण कुशीनगर में ही 483 ई.पू. इनको महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ।
एक जनश्रुति के अनुसार, मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर को आठ भागों में बांटकर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया।
बुद्ध के गुरु निम्न हैं –
बुद्ध के प्रमुख शिष्य निम्न हैं –
Note:- महात्मा बुद्ध के प्रथम शिष्य तपस्सु और भल्लुक बने और प्रथम स्त्री शिष्य इनकी मौसी और पालन पोषणकर्ता प्रजापति गौतमी बनी।
बौद्ध धर्म में सबसे महत्वपूर्ण चत्वारी आर्य सिद्धांत हैं। जो निम्न हैं-
बुद्ध ने अपने उपदेश में कहा था कि सारे दुखों का एकमात्र कारण तृष्णा है और तृष्णा को दूर करने का सिर्फ एक ही रास्ता है, वो है अष्टांगिक मार्ग है।
ये अष्टांगिक मार्ग निम्न है:-
बौद्ध धर्म में वेदों में वर्णित पुनर्जन्म की मान्यता है। इसके अलावा बौद्ध धर्म अनीश्वरवाद का समर्थक है। वे सृष्टि की उत्पत्ति का कारक ईश्वर को नहीं मानते। इस कारण बौद्ध धर्म को अनीश्वरवादी माना जाता है।
बौद्ध धर्म में निर्वाण के सिद्धांत का वर्णन है।
बौद्ध धर्म के अनुसार काम, वासना और लोभ को त्याग करके ही व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त कर सकते हैं।
वे अनीश्वरवाद के अलावा अनात्मवाद, क्षणिकवाद और अहिंसावादी थे। इसके अलावा बौद्ध धर्म किसी वेद को स्वीकार नहीं करता।
बौद्ध धर्म के नियम बहुत ही व्यवस्थित और सब वर्णों में लागू होते थे।
महात्मा बुद्ध ने बौद्ध धर्म के अंदर समुचित व्यवस्था स्थापित करने के लिए त्रिरत्न के नियम का प्रतिपालन किए थे। वास्तव में समुचित बौद्ध धर्म व्यवस्था इन त्रिरत्नों पर ही आधारित है।
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न निम्न हैं –
बौद्ध धर्म में दस शील का सिद्धांत वर्णित है। इन दस शील का पालन करके ही मनुष्य तृष्णा को हरा सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। वे दस शील निम्न हैं –
महात्मा बुद्ध और उनके अनुयायियो ने बहुत से बौद्ध धर्म ग्रंथो की रचना की। महात्मा बुद्ध के धर्मोपदेश त्रिपिटक में संकलित हैं। त्रिपिटक को ३ भागों में विभाजित किया गया है जो निम्न हैं –
विनयपिटक
सुत्तपिटक
अभिधम्मपिटक
सुत्तपिटक के पांच भागों में से एक धम्मपद है जो अत्यंत प्रचलित बौद्ध ग्रंथ है।
गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की उन्होंने सारनाथ में बौद्ध संघ स्थापित किया और बौद्ध धर्म को अपनाने की न्यूनतम उम्र 15 वर्ष निर्धारित की गई।
बौद्ध धर्म का इतिहास स्वयं में ही पूर्ण और स्पष्ट है। महात्मा बुद्ध ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया और प्रचार-प्रसार किया। जिसके साक्ष्य आज भी मिलते हैं, हालांकि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद बौद्ध धर्म में भेदभाव का जन्म हो गया और “मैं” की भावना आ गई जिसके कारण इसका पतन हुआ।
इस लेख में हम आगे बौद्ध धर्म के इतिहास के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
प्रथम बौद्ध संगीति:- इसका आयोजन 483 ई.पू. में राजगृह में संपन्न हुआ। इस संगीति के अध्यक्ष महाकस्स्प थे। इस बौद्ध सन्गीति में सुत्तपिटक और विनयपिटक जुड गए।
दूसरी बौद्ध सन्गीति:- इसका आयोजन 383 ईसा पूर्व में वैशाली में सम्पन्न हुआ। यह कालाशोक के शासनकाल में संपन्न हुई। इस बौद्ध संगीति के अध्यक्ष साबकमीर थे।
तृतीय बौद्ध संगीति:- इसका आयोजन 251 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में संपन्न हुआ। इस बौद्ध संगीति में अभिधम्मपिटक को तीसरे बौद्ध ग्रंथ के रूप में जोड़ा गया।
चतुर्थ बौद्ध संगीति:- इसका आयोजन प्रथम शताब्दी में कुंडल वन में कनिष्क के शासनकाल में संपन्न हुई।
इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र और अश्वघोष थे। इस बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म का विभाजन हुआ। इस प्रकार दो संप्रदायो हीनयान और महायान की उत्पत्ति हुई।
बौद्ध धर्म के प्रमुख प्रचारक निम्न हैं –
प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ निम्न हैं –
Note:- दीक्षाभूमि महाराष्ट्र के नागपुर नामक जगह में है। यह एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है।
यहीं पर डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 में अपनी पत्नी के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
इसके बाद 5,00,000 दलित समर्थको ने भी इसी जगह बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी तभी से हिंदू दलित वर्ग बौद्ध धर्म की तरफ उन्मुख हुआ और आज भारत में अधिकांश दलित समुदाय के लोग बौद्ध धर्म अपनाए हैं।
इस महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल को महाराष्ट्र सरकार ने ‘अ ‘ वर्ग पर्यटन और तीर्थ स्थल का दर्जा दिया है।
चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म दो भागों में बंट गया।
बौद्ध धर्म के पतन का मुख्य कारण इसका बंटवारा ही था। हीनयान और महायान का आपस में समन्वय नही हो सका।
महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 5 शताब्दियों बाद बौद्ध धर्म पूरे उपमहाद्वीप में विस्तारित हो गया और अगले दो हजार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में फैल गया।
हीनयान और महायान के अलावा कालांतर में वज्रयान जैसे अनेक उपसंप्रदायों का जन्म हुआ।
यही विविधता ने जहां एक ओर बौद्ध धर्म का प्रचार पूरे दुनिया में किया वही बौद्ध धर्म के पतन का भी कारण बना।
आंकड़ों के अनुसार, सबसे अधिक बौद्ध पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में रहते हैं। विश्व के लगभग 8 देशों में बहुसंख्यक समुदाय बौद्ध ही हैं।
विश्व में कंबोडिया, भूटान, थाईलैंड, म्यांमार और श्रीलंका देशों में बौद्ध धर्म राजधर्म के रूप में विद्यमान है।
हीनयान महात्मा बुद्ध के उपदेशों को ही मानता है। यह बौद्ध धर्म का एक प्रमुख प्रचारक है।
श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस, बांग्लादेश और नेपाल में हीनयान प्रसिद्ध है।
यह संप्रदाय महात्मा बुद्ध के उपदेशों को नहीं मानता है। यह बुद्ध के अलावा हजारों बौधिसत्वों की पूजा करता है। विश्व में 70% बौद्ध धर्म के अनुयायी महायानी है।
चीन, जापान, उत्तरी कोरिया, वियतनाम और दक्षिणी कोरिया आदि देशों में महायान प्रचलित है।
यह संप्रदाय तिब्बती तांत्रिक धर्म के नाम से भी प्रसिद्ध है। भूटान देश का राजधर्म भी यही है।
भूटान, तिब्बत और मंगोलिया में प्रसिद्ध है।
यह संप्रदाय आधुनिक काल में शुरू हुआ। इसकी उत्पत्ति का श्रेय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को जाता है। यह मुख्यत: भारत में ही प्रसिद्ध है। इसका मत बौद्ध धर्म से भिन्न है।
गौतम बुद्ध के बाद बौद्ध धर्म में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण नाम सम्राट अशोक का है। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद कभी युद्ध न करने की शपथ खाई थी उन्होंने यह बात स्वयं अपने सप्तम स्तंभलेख में स्वीकार किया। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिया था। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए एक अलग से एक धर्म विभाग की स्थापना की और कुछ प्रमुख अधिकारियों को बौद्ध धर्म के प्रचार के कार्य के लिए नियुक्त किया।
अशोक ने अपने समस्त कार्य स्तंभलेखों में विरेखित किए। तीसरी बौद्ध संगीति का साक्ष्य भी उनके भाब्रू नामक स्तम्भलेख से मिलते हैं। अशोक ने नाटकों, धर्म यात्रा, धर्म श्रवण और धर्म लेख के द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
अशोक ने विदेशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। उन्होंने अपने राज परिवारों के सदस्यों को लंका, चीन, जापान, एशिया माइनर, सुमात्रा, यूनान और उत्तरी अफ्रीका आदि देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भेजा।
बौद्ध धर्म ने भारतीय समाज और संस्कृति के पुनरोद्धार में बहुत बड़ा योगदान दिया। कला, भाषा और साहित्य को ऊंचाई में ले जाने का कार्य बौद्ध धर्म ने ही किया।
बौद्ध धर्म में साधारण बोल चाल की भाषा का प्रयोग किया गया जिसके लिए किसी विशेष शिक्षा की आवश्यकता नही थी। उन्होंने अपने काव्य कृतियों की भाषा भी साधारण बोल चाल की भाषा रखी जिसको पढ़ने के लिए किसी पुरोहित की आवश्यकता नही थी।
बौद्ध भिक्षुओं ने पूर्वी भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु अनेक साहित्य और ग्रंथों की रचना की जिसको सिद्ध साहित्य कहा जाता है। जो हिंदी काव्य की आदिकाल शाखा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
प्रमुख सिद्ध कालीन कवि हैं: सरहपा, सरबपा आदि।
वास्तव में भारतीय धर्म को पुनः जीवंत बौद्ध धर्म ने ही बनाया है। ब्राह्मणवाद और कर्मकांड के चक्र के उलझा भारतीय धर्म अपना अस्तित्व ही भूल गया था। लोग हिंदू धर्म से घृणा करने लगे थे, ऐसे समय में बौद्ध धर्म ने भारतीय धर्म का ऐसा पुनरोद्धार किया जैसे वामन अवतार में भगवान विष्णु पृथ्वी को विशाल समुद्र से बाहर ले आए थे।
बौद्ध धर्म ग्रंथो में धर्म के आदर्श सिद्धांत तो चित्रण होता ही है साथ – साथ भारतीय प्राचीन इतिहास के भी दर्शन हो जाते हैं।
बौद्ध धर्म में चित्रकला का अपूर्व विकास हुआ। अजंता की गुफाएं और एलोरा गुफाएं बौद्ध कालीन चित्रकला का दर्शन करा रही हैं। वास्तव में भारत में चित्रकला बौद्ध काल की प्रमुख विशेषताओ में से एक है।
इसके अलावा ऐसी हजारों बौद्ध कालीन चित्रकला के नमूने हैं जो देखने में अत्यंत ही रमणीय और आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं।
अशोक ने कई स्तूप, स्तंभ और चैत्य का निर्माण कराया। अभी तक मिले साक्ष्यों के अनुसार, अशोक ने लगभग 84 हजार स्तूपों का निर्माण करवाया।
सारनाथ,अमरावती, सांची, भरहुत आदि बौद्ध कालीन चित्रकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
भारत में शिल्पकला का जन्म बौद्ध धर्म ने ही किया। भारत में गांधार और मथुरा शैली का विकास भी बौद्ध काल में ही हुआ। कनिष्क के शासनकाल में गांधार शैली के जन्म का श्रेय बौद्ध धर्म को ही जाता है।
महायान शाखा के उत्पत्ति के बाद महात्मा बुद्ध की प्रतिमाओं का निर्माण शुरू कर दिया गया जो आज हर जगह के संग्रहालय में उपलब्ध है।
वास्तव में भारत में पहली बार मूर्तियों के माध्यम से किसी धर्म का प्रचार पहली बार बौद्ध काल में ही हुआ।
नालंदा नामक जगह से मिली 70 फीट ऊंची बौद्ध मूर्ति अपने में ही अद्वितीय है।
बौद्ध धर्म ने शिक्षा के विकास पर विशेष जोर दिया। बौद्ध धर्म का मत है कि, ” समाज को सुधारने का सबसे अच्छा अस्त्र शिक्षा ही है”।
बौद्ध धर्म ने शिक्षा के विकास हेतु अनेक बौद्ध मठों का निर्माण कराया। इसके अलावा प्राकृत शिक्षा का विकास जो बौद्ध काल में हुआ वो अन्य किसी काल में देखने को नहीं मिलता है।
भारत में विश्वविद्यालय के निर्माण की शुरुआत बौद्ध काल से ही शुरू हुआ। बौद्ध भिक्षुओं ने अनेक विश्वविद्यालय का निर्माण कराया जिसमे से कुछ आज भी भारतीय समाज को उचित मार्ग देने का प्रयास कर रहें।
नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, यालाभी जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालय का निर्माण बौद्ध काल में ही हुआ।
भारत में ही बौद्ध धर्म का जन्म हुआ, पालन पोषण हुआ और भारत से ही यह विश्व के अनेक देशों में फैला लेकिन भारत में आज बौद्ध धर्म नगण्य ही है। इसके बहुत कारण है।
वास्तव में महात्मा बुद्ध के जन्म के कई वर्षों पश्चात भारत से बौद्ध धर्म लगभग गायब हो गया वहीं विश्व के अनेक देशों में आज भी बौद्ध धर्म का वही अस्तित्व है जो पहले था। बौद्ध धर्म के पतन के दो कारण हो सकते है। जिसका आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारत में मौर्य साम्राज्य का बौद्ध धर्म प्रेम ही बौद्ध धर्म के पतन का कारण बना। मौर्य सम्राट बौद्ध धर्म को अपना राज्य धर्म मानते थे। जिससे अन्य धर्मों का तिरस्कार किया जाने लगा और अन्य धर्मों के अनुयायियों को प्रताड़ित किया जाने लगा।
बौद्ध धर्म ग्रंथ दिव्यावदान के अनुसार, सम्राट अशोक ने जैनमुनि और अनुयायियों के सर काट के लाने वाले को उपहार स्वरूप स्वर्ण मुद्राएं देने की घोषणा की थी। इससे लोगों के मन में बौद्ध धर्म के लिए घृणा पैदा हो गई।
मौर्य साम्राज्य के अंत के साथ बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हो गया। जिससे बौद्ध मठों में अन्य सम्राटों के लिए षणयंत्र रचना
शुरू हो गया।
भारत में यवनों का आक्रमण बौद्ध मठों की ही देन थी इससे क्रोधित तत्कालीन सम्राट पुष्यमित्र शुंग ने कई बौद्ध मठों को
नष्ट कर दिया था।
मुस्लिम शासकों के आक्रमण ने बौद्ध धर्म की बची कुची श्रेष्ठता को भी नष्ट कर दिया। उत्तरी भारत में मंगोलो के आक्रमण से बौद्ध धर्म को बहुत हानि हुई तथा महमूद गजनवी ने 10 वी शताब्दी में बौद्ध मठों और हिंदू दोनो के धार्मिक स्थलों को नष्ट करके संपूर्ण पंजाब में अपना कब्जा कर लिया। तैमूर लंग ने 14 वी शताब्दी में भारत में आक्रमण करके बहुत से बौद्ध धर्म के अनुयायियों का खुलेआम कत्ल करवाया और बौद्ध धर्म के स्थलों को नष्ट कर दिया। इसके अलावा मुस्लिम शासकों से पहले हूणों ने भी आक्रमण करके बौद्ध और हिंदू धर्म के स्थलों को नुकसान पहुंचाया।
बौद्ध धर्म की कुरीतियां भी बौद्ध धर्म के पतन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् बौद्ध धर्म भी वैदिक धर्म की तरह हो गया।
अनेक कर्मकांडो का प्रचलन हो गया और उचित मार्गदर्शन के अभाव में बौद्ध धर्म के अनुयाई बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को भूलकर स्वार्थ वश होकर बौद्ध धर्म में कर्मकांडो का प्रचलन कर दिया।
जिस समय बौद्ध धर्म की कुरीतियां दिन दौगुनी गति से वृद्धि कर रही थी उसी समय आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट जैसे ऋषियों ने वैदिक धर्म से कुरीतियां मिटाने का प्रयास किया, परिणामस्वरूप वैदिक धर्म के अनुयायियों की वृद्धि होने लगी और लोग वैदिक धर्म की तरफ उन्मुख हुए।
आदि शंकराचार्य ने बौद्ध भिक्षुओं को तर्क में पराजित करके अपना अनुयायी बना लिया और बौद्ध मठों से वैदिक धर्म का प्रचार करने लगे।
यही वैदिक धर्म बाद में परिवर्तित होकर हिंदू धर्म बन गया और आम लोगों में हिंदू धर्म सर्वमान्य धर्म बन गया जिससे बौद्ध धर्म का पतन हुआ।
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