जैन धर्म प्राचीन भारत इतिहास (Jainism Ancient Indian History) का एक अंश का है। यह अंश UPSC, SSC, Bank exam व कई अन्य परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्यपूर्ण है। इस पोस्ट में जैन धर्म के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। यह पोस्ट Ancient History notes in Hindi व UPSC notes in Hindi को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। इस पोस्ट से पहले पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल व प्राचीन भारत से सम्बंधित अन्य जरुरी पोस्ट कर चुके है है जिन्हे आप igmcshimla.org पर जाकर देख सकते है। आप जिन अन्य टॉपिक पर पोस्ट चाहते है उस से सम्बंधित हमे हमे कमेंट कर सकते है।
जैन धर्म एक सामाजिक और धार्मिक क्रांति की अभिव्यक्ति थी। भारतीय समाज में व्याप्त ब्राह्मणवाद और कर्मकांडवाद के खिलाफ जो लहर उठी वह जैन धर्म था।
जैन शब्द संस्कृत के “जिन” शब्द से उद्धृत है, जिसका अर्थ है जीतने वाला।
वास्तव में उस समय जिस तरह जैन धर्म भारतीय समाज में आध्यात्मिक और सामाजिक क्रांति लाया उसने समस्त विश्व का ध्यान जीत ही लिया।
जैन धर्म बहुत ही प्राचीन धर्म था किंतु महावीर स्वामी ने इस धर्म का व्यापक प्रसार और प्रचार किया और सर्वमान्य बनाया।
जैन धर्म हिंदू धर्म की ही एक शाखा है लेकिन इसको हम हिंदू धर्म का परिष्कृत रूप बोल सकतें हैं।
उल्लेखनीय बात ये है की जैन धर्म के सभी तीर्थकर क्षत्रिय हुए हैं।
इस लेख में हम जैन धर्म के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए जैन धर्म की उत्पत्ति के कारण, जैन धर्म के नियम, जैन धर्म के सिद्धांत, महावीर स्वामी, जैन धर्म की जातियां, जैन धर्म का भारतीय समाज और संस्कृति में योगदान और जैन धर्म का पतन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
जैन धर्म की उत्पत्ति के कारण जानने से पहले आपको वैदिक काल के बारे पता होना चाहिए इस लेख में हम वैदिक काल के बारे में सूक्ष्म जानकारी लेंगे।
जैन धर्म के संस्थापक
जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव माने जाते हैं। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ही हैं।
जैन धर्म के प्रवर्तक
यह बहुत ही विवादास्पद प्रश्न है कि जैन धर्म के प्रवर्तक कौन थे?
जैन धर्म के प्रवर्तक के विषय में आज भी मतभेद हैं।
कुछ इतिहासकार जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी को मानते हैं तो कुछ ऋषभदेव को मानते हैं, हालांकि इतिहास के अनुसार, महावीर स्वामी ही जैन धर्म के असली प्रवर्तक हैं।
जैन धर्म में 24 तीर्थकर हुए जिसमे प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव और अंतिम तीर्थकर महावीर स्वामी माने जाते हैं। वास्तव में यह धर्म बहुत प्राचीन है और महावीर स्वामी ने ही इसको जन साधारण में प्रसिद्ध किया।
जैन धर्म एक बहुत ही कठोर धर्म है। यह कर्मकांडो का विरोध करता है और मानवता पर विश्वास करता है। जैन धर्म के निम्न नियम और शिक्षाएं है –
जैन धर्म में पंच महाव्रतो की व्यवस्था की गई है जो निम्न है –
जैन धर्म में त्रिरत्नों की व्यवस्था की गई है। इन त्रिरत्नो के आधार पर ही जैन धर्म में समस्त नियमों की व्यवस्था है। ये त्रिरत्न निम्न है –
जैन धर्म के अनुसार, इस संसार में 18 तरह के पाप पाए जाते हैं। जिनको करना किसी भी जैन अनुयायी के लिए पूर्णतयः मना हैं।
ये 18 पाप निम्न हैं:-
अनेकांतवाद
अनेकांतवाद जैन धर्म की ही देन है। अनेकांतवाद का अर्थ है की बिना दोनो पक्षों के विचारों को जाने बिना कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए। वास्तव में हमारी भारतीय संस्कृति में स्यातवाद जैन धर्म की सबसे बड़ी देन है। हमारी भारतीय नीति भी अनेकांतवाद पर ही आधारित है। पंथ निरपेक्ष और गुट निरपेक्षता की नीति अनेकांतवाद के ही कारण है।
सात तत्व
जैन धर्म ग्रंथों में सात तत्वों का वर्णन मिलता है –
छः द्रव्य
जैन धर्म में छः द्रव्यों का वर्णन मिलता है –
चार कषाय
कषाय का मतलब “दोष”, जिनके कारण कर्मों का आस्रव होता है। जैन धर्म के अनुसार यही कषाय के कारण लोग मोक्ष नहीं प्राप्त कर पाते और जन्म मरण के बंधन में बंधे रहते हैं।
जैन धर्म के ग्रंथों में निम्न 4 कषाय का वर्णन मिलता है:-
चार गति
जैन धर्म के अनुसार, जन्म मरण के लिए विशेष प्रकार की गतियां जिम्मेदार होती हैं।
जैन धर्म में 4 गति का वर्णन है, जो निम्न हैं –
महावीर स्वामी को जैन धर्म का पोषक कहा जा सकता है क्योंकि महावीर स्वामी से पहले जैन धर्म विरले ही लोगों में प्रसिद्ध था।
यद्यपि यह बहुत ही प्राचीन धर्म है लेकिन महावीर स्वामी ने इसको समस्त भारतीय उपमहाद्वीप में विस्तारित किया।
जैन धर्म के 24वें तीर्थकर और पालक पोषक महावीर जैन का जन्म ई.पू. 540 में वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ था।
इनके जन्म वर्ष को लेकर अनेक मत हैं। कुछ इतिहासकार इनके जन्म वर्ष को 599 ई. पू. तो कुछ 563 ईसा पूर्व मानते हैं।
इनके बचपन का नाम वर्धमान था और इनके माता का नाम त्रिशला देवी और पिता का नाम सिद्धार्थ था।
महावीर स्वामी का विवाह यशोधरा से हुआ। महावीर स्वामी की पुत्री का नाम प्रियदर्शना था और उसका विवाह जमाली के साथ हुआ था।
प्रारंभ में महावीर स्वामी एक ग्रहस्थ की तरह जीवन व्यतीत किया लेकिन 30 वर्ष की आयु में ये अपने अग्रज नंदिवर्धन की आज्ञा लेकर संन्यासी बन गए।
सन्यासी जीवन
42 वर्ष की आयु में उन्होंने ऋजुपालिका नदी के तट पर साल के पेड़ के नीचे “कैवल्य” (ज्ञान) की प्राप्ति की।
कैवल्य की प्राप्ति के बाद वे जिन अर्थात् विजेता कहलाए। ज्ञान प्राप्ति करने के बाद इन्होंने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की।
इनकी तपस्या का वर्णन जैन ग्रंथ कल्पसूत्र और आरांगसूत्र में मिलता है।
इनका पहला उपदेश राजगृह में बराकर नदी तट के किनारे स्थित वितुलाचल पर्वत में संपन्न हुआ।
महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य इनका दामाद जमाली था, जिसने कालांतर में विद्यांध होकर विद्रोह कर लिया और स्वयं को जिन घोषित कर लिया।
जमाली का साथ महावीर स्वामी की पुत्री प्रियदर्शना ने और 1000 भिक्षुओं ने दिया, हालांकि कालांतर में प्रियदर्शना संघ में वापस आ गई थी।
वे 30 साल तक जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया इस दौरान वे कोशल, मिथिला, मगध और चंपा आदि जगहों की यात्रा की और जैन धर्म का प्रचार किया।
अंत में ई.पू. 468 में पावापुरी नामक जगह में निधन हुआ। जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार महावीर स्वामी सबसे ज्यादा समय वैशाली में व्यतीत किए। जैन अनुयायी महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर जयंती के नाम से मनाते हैं और निधन दिवस को दीपावली के रूप में मनाते हैं।
सम्राट अशोक के अभिलेखों में जैन धर्म में मतभेद का वर्णन मिलता है। इन अभिलेखों को देखने से पता चलता है कि अशोक के समय में जैन धर्म के ऋषियों में धर्म मतभेद शुरू हो गया था। यह मतभेद महावीर स्वामी के निधन के पश्चात् हुआ।
जैन संघ में अक्सर इस बात को लेकर बहस हुआ करती थी कि तीर्थकरों की मूर्ति को वस्त्रों से ढकना चाहिए या नहीं निर्वस्त्र रखना चाहिए।
यही मतभेद प्रथम सदी मे खंडित हुआ जब जैन धर्म दो भागों में बंट गया।
NOTE:- 2011 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 44 लाख 51 हजार जैन धर्म के अनुयायी रहते हैं। इनमे से अधिकांश वैश्य समाज के लोग हैं।
जैन धर्म ने प्रथम बार वैदिक काल की बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। जैन धर्म में संस्कृत भाषा का पूर्णतया त्याग किया गया हैं।
जैन धर्म का धार्मिक साहित्य अर्धमागधी में लिखा गया है। जैन धर्म ने अपभ्रंश की पहले व्याकरण की रचना की।
जैन धर्म के प्रमुख योगदान निम्न हैं:-
भारत में जैन धर्म ने वास्तुकला के क्षेत्र में अपूर्व योगदान दिया। जैन धर्म के अनुयायियों ने जैन धर्म के प्रचार हेतु अनेक गुफाओं, मंदिरो, स्तूपों, मठों, स्तम्भो का निर्माण करवाया। जैन वास्तुकला का विकास मुख्यतः 11-12वी शताब्दी के बीच के हुआ।
उनके उच्च वास्तुकला के कुछ नमूने निम्नलिखित हैं –
जैन धर्म ने भारतीय लोक भाषा को उन्नत करने का प्रथम प्रयास किया। उनकी अधिकांश रचनाएं प्राकृत और अपभ्रंश भाषा में हैं।
उन्होंने भारतीय समाज और साहित्य में कोई नई भाषा को थोपने का प्रयास नही किया उन्होंने केवल उन्हीं भाषाओं का प्रयोग अपने उपदेशों, सिद्धांतों और साहित्य में किया है जो पहले से प्रचलित थी।
दक्षिण भारत में भी जैन धर्म साहित्य ने अपना प्रभाव छोड़ा और दक्षिणी भाषाओं में साहित्य सृजन किया।
गुप्त काल के समय संस्कृत भाषा का महत्व होने से जैन धर्म के अनुयायियों ने अपनी साहित्य सृजन की भाषा संस्कृत को बनाया।
भारतीय समाज में व्याप्त भ्रांतियों, अंधविश्वास और कर्मकांडो को दूर करने का प्रथम सफल प्रयास जैनियों ने ही किया।
महावीर स्वामी के समय के भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था से ग्रसित हो गया था। विभिन्न प्रकार के कर्मकांडो ने भारतीय समाज को जकड़ लिया था।
समाज में शूद्रों और स्त्रियों की दशा अत्यंत दयनीय थी।
वास्तव में जैन धर्म ने स्त्रियों की दशा सुधारने के अलावा जाति प्रथा को अधर्म बताते हुए सबको एक समान बताया।
जाति प्रथा में कमी आने से ब्राह्मणों को अपना वर्चस्व कम होता हुआ प्रतीत हुआ अतः ब्राह्मणों ने जैन धर्म के विषय में तरह तरह की भ्रांतियां फैलाई।
महावीर स्वामी के निधन के पश्चात् जैन धर्म में अनेक मतभेदों का जन्म हुआ यही मतभेद कालांतर में जैन धर्म के बटवारें का कारण बना। आज इस लेख में हम कुछ विशेष कारणों की चर्चा करेंगे जो जैन धर्म के पतन का कारण बने।
ब्राह्मणों से वैमनस्य
जैन धर्म ब्राह्मणवाद के खिलाफ एक नई विचारधारा थी। यही ब्राह्मणों से वैमनस्य ही जैन धर्म के पतन का कारण बना।
ब्राह्मणों ने जैन धर्म के विषय में गलत भ्रांतियां फैलाई और जैन धर्म के सिद्धांतों को चुनौती दी। जिससे ब्राह्मणों के समर्थकों ने जैन धर्म को अस्वीकार किया और जैन धर्म के अनुयायियों को प्रताड़ित किया।
अहिंसा
जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत अहिंसा थी। जैन धर्म का कहना था कि कृषकों को कृषि कार्य में जुताई नही करना चाहिए क्योंकि इससे खेत में विद्यमान जीव कीट आदि का दमन होता है।
अतः कृषक जैन धर्म के प्रति उदासीन रवैया अपनाने लगे क्योंकि भारतीय जनता में आजीविका का प्रमुख स्त्रोत कृषि थी।
राजाओं का कम सहयोग
बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म को तत्कालीन राजाओं का पर्याप्त सहयोग नहीं मिला।
राजा एक समस्त विस्तृत भूमि का प्रतिनिधि होता अतः वह कोई भी व्यक्ति या धर्म विशेष का प्रचार करेगा तो उस समस्त राज्य के लोगों को वो धर्म को अपनाना पड़ेगा और प्रचार करना पड़ेगा जिससे वो विशेष धर्म का प्रचार प्रसार और उन्नति निश्चित है।
दुर्भाग्य से जैन धर्म को किसी भी राजा का सहयोग नहीं मिला।
कठोर नियम और सिद्धांत
जैन धर्म के नियम और सिद्धांत बौद्ध धर्म की तरह लचीले और सरल नहीं है। इन नियमों और सिद्धांतो को साधारण लोग नही निभा सकते।
इन नियमों और सिद्धांतो को अपनाने से लोगो के आजीविका पर और व्यवहारिक जीवन में गलत प्रभाव पड़ता।
भेदभाव
महावीर स्वामी के पश्चात जैन धर्म में भेदभाव व्याप्त हो गया। मार्गदर्शक की कमी से जैन धर्म बंट गया।
जैन धर्म में अब लोभ, रहस्य और कर्मकांडो का प्रचलन हो गया और स्त्रियों और निम्न धर्म के लोगों का संघ के आना और जैन धर्म को अपनाना निषेध कर दिया गया जिससे लोगों के मन के घृणा के भाव उत्पन्न हो गए।
मुस्लिम शासकों का आक्रमण
महमूद गजनवी, अलाउद्दीन खिलजी जैसे मुस्लिम शासकों ने भारत में आक्रमण करके अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए जैन मंदिरों, मठों, संघों और स्तंभों को नष्ट कर दिया। जिससे जैन धर्म के पतन का रास्ता निश्चित हुआ।
यह पोस्ट gk questions या सामन्य ज्ञान questions को कवर करेगी। इस समान्य ज्ञान क्वेश्चन से सम्बंधित पोस्ट पहले ही… Read More
09 April 2022 Current Affairs in Hindi सभी महत्यपूर्ण करंट अफेयर्स डेली को कवर किया गया है। इस आर्टिकल में… Read More
11 April 2022 Current Affairs in Hindi सभी महत्यपूर्ण करंट अफेयर्स डेली को कवर किया गया है। इस आर्टिकल में… Read More
31 March 2022 Current Affairs का यह पोस्ट हिंदी करंट अफेयर्स 2022 को कवर करेगा। इन Hindi Current Affairs 2022 को इंटरनेट पर विभिन्न सोर्स… Read More
30 March 2022 Current Affairs का यह पोस्ट हिंदी करंट अफेयर्स 2022 को कवर करेगा। इन Hindi Current Affairs 2022 को इंटरनेट पर विभिन्न सोर्स… Read More
29 March 2022 Current Affairs का यह पोस्ट हिंदी करंट अफेयर्स 2022 को कवर करेगा। इन Hindi Current Affairs 2022 को इंटरनेट पर विभिन्न सोर्स… Read More
This website uses cookies.