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आर्यों का आगमन Arrival of Aryans Ancient History notes

आर्यों का आगमन प्राचीन भारत इतिहास का एक महत्यपूर्ण अंग है। कई वषों तक इस भाग से सीधे सवाल विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में आएं हैं। आर्यों का आगमन UPSC, सिविल सेवा परीक्षा, Bank Exam, SSC Exam आदि की दृस्टि से बहोत अधिक महत्यपूर्ण है। यह पोस्ट Arrival of Aryans in Hindi, UPSC notes in Hindi, Ancient History in Hindi को ध्यान में रखकर बनायीं गयी है। आप किस अन्य टॉपिक पर पोस्ट चाहते है हमे कमेंट करके बता सकते है।

आर्यों का आगमन नोट्स

भारतीय उपमहाद्वीप में ताम्र पाषाण कालहड़प्पा सभ्यता और आर्यों के आगमन की तिथियों में मतभेद हैं। कही कही ताम्र पाषाण काल हड़प्पा सभ्यता के बाद तक चला वहीं कई स्थानों में ये हड़प्पा सभ्यता के पहले ही खत्म हो गया। कालक्रमानुसार, भारतीय उपमहाद्वीप में हड़प्पा सभ्यता के अंत के बाद आर्यों का आगमन हुआ। आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं, लेकिन वैदिक सभ्यता पढ़ने से पहले हम आर्यों के विषय में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को विस्तार से  जानेंगे।

भारतीय उपमहाद्वीप में आर्यों का आगमन हुआ था या आक्रमण ये आज भी चर्चा का विषय है। बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण किया था और यहां के लोगों पर शासन किया वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि आर्य अपने क्षेत्र की जलवायु या अन्य किसी कारण से अपने देश को छोड़कर भारत में बसने आए।

भारतीय इतिहास के विस्तृतिकरण का श्रेय मैक्स मूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले को जाता है। इन्होंने यह विचार रखा कि आर्यो ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया था, लेकिन क्या ये बात पूरी तरह सही है? 

इस आर्टिकल में हम आर्यों के आगमन से संबंधित अनेक तथ्यों के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे। 

आर्य कौन थे?

आर्यों के बारे में विस्तृत वर्णन करने से पूर्व हम ये जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर ये आर्य कौन थे और कहां से आए?

आर्य लोग बाहर से आए थे लेकिन उनके क्षेत्र विशेष के बारे में पर्याप्त साक्ष्य नहीं है। आज भी इतिहासकार आर्यों के निवास स्थान के बारे में साक्ष्य ढूंढ रहे हैं।

हालांकि प्राप्त साक्ष्यों के अनुसार आर्यों का निवास स्थान एशिया कहना ही श्रेयस्कर है।

सामान्यतः इंडो – आर्यन भाषा बोलने वालो को आर्य कहते हैं। ये लोग उत्तर- पश्चिमी पहाड़ों से आये थे तथा पंजाब के उत्तर पश्चिम में बस गए तथा बाद में गंगा के मैदानीय इलाकों में जहाँ इन्हे आर्यन् या इंडो- आर्यन् के नाम से जाना गया। 

अंग्रेजी इतिहासकार, मैक्समूलर के अनुसार भारत एवं ईरान के मध्य अवस्थित मध्य एशिया क्षेत्र से निकलकर एक शाखा यूरोप, दूसरी शाखा ईरान एवं तीसरी शाखा भारत में बसी। भारत में जो शाखा आई थी वह शाखा अफगानिस्तान से होते हुये हिन्दूकुश पर्वत को पार करके सप्तसिंधु क्षेत्र आये तथा यहीं पर ये लोग बस गये थे। ये लोग इंडो- ईरानी, इंडो- यूरोपीय या संस्कृत भाषा बोलते थे। 

आर्य लोग मध्य एशिया के दो क्षेत्रों से भारत आए। प्रथम क्षेत्र को एंड्रोनोवा संस्कृति कहा गया। यह संस्कृति ई. पू. 2000 के आस पास पूरे मध्य एशिया में फैली हुई थी। दूसरे क्षेत्र को बैक्ट्रिया मार्जियाना आर्कियोलॉजिकल कॉम्प्लेक्स(BMAC) कहा जाता है। यह ई. पू. 1900-1500 तक प्रभाव में थी। यह क्षेत्र अफगानिस्तान में बैक्ट्रिया, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान सहित दक्षिण मध्य एशिया में फैला हुआ है। 

ई. पू. 1500 के आस पास BMAC में घोड़े के पालने, स्पॉक वाले पहिए का रथ का प्रयोग, दाह संस्कार, स्वास्तिक के सुबूत मिले हैं जो आर्य सभ्यता होने की गवाही देते हैं। 

आर्य लोग सप्त संधैव प्रदेश में आकर बसे। सप्त सैंधव प्रदेश के अंतर्गत सात नदियाँ आती हैं, जो वैदिककाल थी, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-

  1. सिंधु
  2. सरस्वती
  3. झेलम
  4. चेनाब
  5. रावी/ इरावदी
  6. सतलज
  7. व्यास

आर्यों का भारतीय उपमहाद्वीप में विस्तार

शुरुआत में आर्य लोग पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किनारे बसे। इस सम्पूर्ण क्षेत्र को “सात नदियों की भूमि” कहते हैं।

भारत में आर्यों का आगमन बहुत चरणों में हुआ। सबसे पहले चरण में ऋग्वैदिक आर्य आए। जिनकी समय सीमा ई.पू.1500 के आस पास है। 

आर्यों का संघर्ष

भारत में सर्वप्रथम ऋग्वैदिक आर्य आए। ऐसा कहा जाता है कि ऋग्वैदिक आर्य यहां के निवासियों को अपने से नीचे समझते थे और ऋग्वेद के अनुसार यहां के निवासियों को “दस्यु” बुलाते थे। आर्यों को “त्रासदस्यु” कहा गया।

ऋग्वेद के अनुसार, जब आर्य भारतीय उपमहाद्वीप आए तो उनके लिए यहां स्थापित होना बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि यह के निवासी आर्यों को आक्रमणकर्ता समझते थे। फलस्वरूप आर्यों को यह के लोगों के साथ युद्ध करना पड़ा। इन युद्धों में आर्यों ने स्वेदेशियो को हराया और अपना राज्य स्थापित किया। आर्यों को यहां के निवासियों के अलावा अपने अंतः कबीलों से भी द्वंद करना पड़ा। 

ऋग्वेद के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में आर्यों को 5 जनजातियों में विभाजित किया जा सकता है, जिसे पांचजन कहा जाता था। ये सभी जनजाति की आपस में लड़ाई हुई, हालांकि गौर करने की ये बात है कि अंतः कबीलों का संघर्ष यहां के निवासियों से संघर्ष के बाद हुआ। अतः अंतः कबीलों के संघर्ष में कुछ अनार्यो ने भी सहयोग किया। 

भरत और त्रित्सु नाम के दो आर्यवंश थे और उनको गुरु वशिष्ठ का सहयोग प्राप्त था। इस भरत जनजाति के कारण ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा। इस बात की स्पष्टता ऋग्वेद करता है जिसमे भारत नाम का उल्लेख पहली बार किया गया। ऋग्वेद से पहले किसी भी काल के ग्रंथ या किताब में भारत शब्द का उल्लेख नहीं मिलता। 

भरत जनजाति का विरोध दस प्रमुखों द्वारा किया गया, जिनमे 5 आर्य जनजाति के ही मुखिया थे और शेष 5 अनार्य। भरत को दस प्रमुखों के साथ परुशनी नदी जो कि रावी नदी के साथ है, के किनारे युद्ध करना पड़ा इसको दस राजाओं का युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में भरत की विजय हुई। 

पराजित जनजातियों में सबसे महत्वपूर्ण पुरु थे। भरत ने पुरु के साथ समझौता कर लिया और कुरु नामक जनजाति का गठन किया।  

आर्य भारतीय उपमहाद्वीप में अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहे क्योंकि उनके पास अश्वयुक्त रथ थे ( भारतीय उपमहाद्वीप में जिनका प्रयोग पहले किसी ने नहीं किया था और न ही कोई अश्व से अवगत थे)।

अभी तक प्राप्त साक्ष्यों से आर्यों के हथियारों के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। संभवतः उनके पास बेहतर हथियार, अश्वयुक्त रथ और कवच थे जिनकी वजह से वे यहां अपना वर्चस्व स्थापित कर पाए। 

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